Monday, April 11, 2011

हमार परिचय



   हमार नाम ओम प्रकाश तिवारी अहै। हमार जनम उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ जिला के गांव उमरपुर घाटमपुर मे भा रहा।हमार परिवार गरीबी रेखा से थोरि के उपर अउर मध्यम तबका से थोरि के नीचे के रहा।मतलब कि खात-पियत परिवार रहा। परिवार काफी बडा रहा। हमार पिताजी फौज मे रहेन। हम दुइ भाई अउर एक बहिन अही। 
   छोटी गोल से पंचवे दर्जा तक के पढाइ गांव से करीब एक मील दूर प्राइमरी पाठशाला भदोंहीं में भइ।छठयें से अठयें तक आदर्श जूनियर हाईस्कूल राजगढ मे पढे। हाई स्कूल बीएन सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भदोंहीं प्रतापगढ से केहे। इन्टर केपी हिन्दू इन्टर कालेज प्रतापगढ से पास केहे। ओकरे बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए अउर एमए पास केहे। बीए मे हमार विआह होइगा। इलाहाबाद में छात्र राजनीति के चस्का लागि गां। इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव लडे अउर हारि गये। ओकरे पहिले मण्डल आयोग के सिफारिस लागू करै के विरोध में आन्दोलन शामिल भये अउर जेल गये। इहीं बीच एक बिटिया अउर एक बेटवा पैदा भा। अब हमरे उपर जिम्मेदारी जियादा बढि गइ। साहित्य में पहिलेन से मन रमत रहा। छात्रसंघ भवन मे अक्सर कवि सम्मेलन अउर काव्य गोष्ठी होत रही। धीरे-धीरे ओहमा हमहूं शामिल होइ लागे। अब राजनीति छोडि के मन साहित्य साधना अउर सिविल सेवा परीक्षा के तैयारी मे लगाये। उत्तर प्रदेश पीसीएस प्रारम्भिक परीक्षा तीन बार पास केहे। मुख्च परीक्षा मे फेल होइ गये। ओकरे बाद मन घर-परिवार मे रमइ लाग। एकरे अंलांवा पइसा-कउडी के दिक्कत होइ लाग। हमार दुइनउ लरिेकन स्कूल जाइ लागेन। यूंकि बीएड केहे रहे यंह बिना मास्टर बनइ के कोशिश करइ लागे।सुखनन्दन प्रसाद पाण्डेय सार्वजनिक इण्टर कालेज विहारगंज प्रतापगढ मे एक साल तक पढउबउ करे।इही के संघे प़त्रकारिता शुरु करे अउर हिन्दी दैनिक जनमोर्चा के प्रतापगढ संवाददाता बने। पइसा बहुत कम मिलत रहा।यह बिना मास्टरी छोडि देहे। एक साल तक घरे बइठा साहित्य साधना मे रत रहे। लेकिन घरउ मे मन नाही लागत रहा। एक दिन बिना बताये घरे से लखनउ भागि आये।
   लखनउ मे एक हप्ता तक भटकत रहे। एक दिन काफीहाउस हजरतगंज मे बइठा रहे। उहीं सययद असरार नाम के एक सज्जन मिल गयेन। आपस मे परिचय भा। असरार साहेब इलाहाबाद के हंडिया तहसील के निकलेन। ओनहू इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे पढे रहेन। पहिलेन मुलाकात मे दुइनउ जने मे दोस्ती होइ गइ। दुइ बार काफी पिया गा अउर ढेर देर तक विश्ववि़द्यालय के बारे मे चर्चा होत रही। असरार साहेब उत्तर प्रदेश सूचना विभाग मे उप निदेशक रहेन। दुसरे दिन वो हमका अपने आफिस मे बोलायेन अउर बतायेन कि लखनउ से हिन्दुस्तानी जुबान मे अपना अखबार नाम से एक अखबार निकलइ वाला बा। अमीनाबाद मे ओकर आफिस खुला बा। यूएनआई वाले खुर्शीद कामिल किदवई साहेब ओकर  सम्पादक अहंइ। आजइ जाइ के उनसे मिलि ल्या। संझा के करीब छः बजे अमीनाबाद अपना अखबार के दप्तर गये। संजोग से किदवइ साहेब अपने केबिन मे बइठा मिलि गयेन। उनसे मिलइ बरे पर्ची लगाये। किदवई साहेब तुरन्तइ हमका बोलवाइ लेहेन। थोडी देर उनसे बातचीत भइ। शायद हमार किस्मत अच्छी रही। किदवई साहेब सन्तुष्ट होइ गयेन। कहेन कि ठीक अहइ कल से आइ के काम करा। बस दुसरे दिन से अपना अखबार मे काम करइ लागे। अपना अखाबार मे काम करे से उर्दू शब्दन के ज्ञान खूब होइगा। उर्दू के ज्ञान बढा तउ ओसे हमार हिन्दी अउर मजबूत होइ गइ। अब जब हिन्दी लिखी तउ ओहमा उर्दू के तडका मारइ देइ। अब सीनियर लेखक अउर पत्रकार हमरे लेख के बखान करइ लाागेन। अपना अखबार मे काम करत कुछइ दिन भा रहा कि एक दिन काफी हाउस मे रवि सक्सेना नाम के एक सज्जन मिलि गयेन। वंह समय वो हिन्दी साप्ताहिक दि संडे पोस्ट मे लखनउ संवाददाता के पद पे काम करत रहेन। सक्सेना जी हमका काफी पियायेन अउर काफी देर तक दुइनउ जने बतियाये। चलत-चलत सक्सेना जी हमसे कहेन कि हप्ता मे दुइ-तीन स्टोरी संडे पोस्ट बरे लिखि देवा करा। हम तोहका कुछ मेहनताना देवाइ देब। शायद सक्सेना जी जानि गयेन कि हम अभाव मे जिअत अही। दुसरे दिन फिर काफीहाउस मे सक्सेना जी से मुलाकात भइ। सक्सेना जी हमका लिआइके इलाहाबाद बैंक के कैन्टीन मे गयेन। हुंआ दुइनउ जने पूडी-सब्जी खाये अउर चाय पिये। कुछ देर बातचीत केहे के बाद सक्सेना जी हमका लिआइ के बैंक गयेन अउर एक हजार रुपिया निकाल के हमका दइ देहेन। कहेन कि एका रक्खा अउर मन लगाइ के पत्रकारिता करा। कउनउ दिक्कत होये तउ हमसे जरुर बताया। संकोच जिन केहा। अब हमका दुइ अखबार से पइसा मिलइ लाग। एसे अभाव काफी हद तक दूर होइगा अउर कुछ पइसा बचाइ के हम घरे भेजब शुरु कइ देहे। यंह तरंह से धीरे-धीरे हम लखनउ मे जमि गये अउर लालकुआं मे एक हजार रुपिया महीना के कमरा किराये पे लइके रहइ लागे।
   तुलसी बाबा लिखे अहैं कि सब दिन होइ न एक समाना। अपना अखबार के नौकरी छूटि गइ अउर संडे पोस्ट से पइसा मिलब बन्द होइगा। एक बार फिर अभाव मे आइ गये। ऐसेन मोहताजी जिन्दगी मे कबहुं नाही महसूस करे रहे। एक दिन हिन्दी मासिक रुरल इंडिया के सम्पादक जितेन्द्र पाण्डेय हमरे लगे आयेन। ओ हमका पहिले से जानत रहेन।रुरल इंडिया मे काम करइ के आग्रह करेन। बेकारी अउर अभाव से परेशान हामी भरि देहे। हां कहतइ मान पाण्डेय जी कुछ रुपिया हमका एडवांस देहेन। रुरल इण्डिया मे काम करत महीनउ भर नाही बीता कि दैनिक युनाइटेड भारत मे वरिष्ट संवाददाता के रुप मे काम मिलिगा। अब जिन्दगी के गाडी फिर पटरी पे लउटि आइ। तीन साल बाद फिर रुरल इंडिया अउर युनाइटेड भारत से नौकरी छूटि गइ। करीब दुइ महीना बाद समाचार एजेंसी उत्तर प्रदेश समाचार सेवा मे संवाददाता के रुप मे काम करइ लागे यंह तंरह करीब तीन साल बिताइ देहे। खर्चा पूरा करइ बरे एजेन्सी के संघे स्वतन्त्र रुप से कउ जंगह लिखे। मौजूदा समय मे देनिक प्रभात मे करत अही। इंही तरीके से लहटम-पहटम जिन्दगी के गाडी चलत बा।